तुम्हारे बैरागढ़ी छोर पर
सन्त हिरदाराम की एक पावन कुटिया है
बड़ी झील !
यह सन्त सादगी और मानवीय करुणा का अवतार है
जीव-सेवा और प्रेम जिसकी दिनचर्या है
आज के बाज़ारू वक़्त में ऐसे सन्त का होना
ठगने-लूटने की प्रवृत्त्ाि का सच्चा निषेध है
कुछ दिनों पहले अपने भौतिक शरीर से
जा चुका है यह सन्त
पर उसके सुयश और संकल्प का
आज भी लोगों की आत्मा में अँजोर है
तुमने तो देखा है उस सन्त का सत्कर्म बड़ी झील !
उस सन्त की आँखें तुम्हें भी तो निहारती थीं
बहुत मान से