Last modified on 8 अगस्त 2012, at 17:52

सपने का सच / अज्ञेय

सपने के प्यार को
तुम्हें दिखाऊँ
-यों सच को

सुन्दर होने दूँ।
सपने के सुन्दर को
प्यार करूँ, सब को दिखलाऊँ-
सच होने दूँ।

पर सपने के सच को
किसे दिखाऊँ
जिस से वह सुन्दर हो
और उसे कर सकूँ प्यार?

नयी दिल्ली (स्वप्न में), 22 जनवरी, 1957