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समझो बस अभिलाषी छी / अनिल कुमार झा

कहो कहो तोंय वसंत हमरा
हम्में घर घर बासी छी,
आठ पहर के साथी हम्में
हम्मीं रोग उदासी छी।

जौं उमंग छौं, जौ तरंग छौ
समझोॅ हमरा साथोॅ में,
होठोॅ पर मुस्कान, थरथरी
ऐल्होॅ राखो हाथो में
हम्मीं जिजीविषा अनंत हमरा
हमरा कहोॅ प्रवासी छी।

प्रिया विहीन हम्मीं कूकै छी
प्रेमोॅ में गमगम गमकौं,
कहीं पपीहा मोर मोरनी
बनी सवासिन रं धमकौं,
बरस बरस अवतरित महंथ
हमरा ही भोग, विलासी छी।

जड़ चेतन के पुलक गान पर
मिलभौं हम्मीं मुस्कैतें,
जीवन के निर्झर सरिता संग
पैभै हमरा ही गैतें,
छी बनलोॅ तद्धित, कृदंत, हमरा
समझो बस अभिलाषी छी।