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समय / रामदरश मिश्र

ओ प्रसन्न समय जी
आप इतने दिनों बाद इस घर आये हैं तो
कुछ दिन ठहर जाइएगा
कितनी कठोर प्रतीक्षा की है आपकी इस बेचारे ने
समय जी हँसे बोले-
”अरे भाई, मैं तो लोगों का अतिथि बन कर
आता-जाता रहता हूँ
किसी एक जगह कैसे ठहर सकता हूँ?“
अब मैं हँसा और बोला-
”लेकिन सच तो यह भी है न समय जी
कि आप विशेष घरों में
घरजमाई बनकर टिक जाते हैं
बल्कि यों कहें कि
आप उनके हाथों बिक जाते हैं
और आस-पास के अनेक परेशान घर
सोचते रहते हैं कि
आपकी नज़र कब उनकी ओर फिरेगी।“
-10.5.2015