"कला की अधिष्ठातृ माँ!"
प्रथम हे पदवन्दन शतवार!
दयामयि माँ जीवन आधार,
समर्पण तुमको लघु उपहार!
तुम्हीं से ले तुमको मधुगान,
समर्पित करता मैं नादान!
तुम्हारी आहट परम पुनीत,
बनी मेरी "पगध्वनि" के गीत!
अकिंचन के भावों के फूल,
न तेरे दृग में होंगे भूल!
छलकने को दृग से इसबार,
उमड़ती श्रद्धा अगम-अपार!
समर्पण करने का अपराध,
समझ सुत क्षमा करोगी आज!!