दिन भर हम युद्ध करते हैं
अपने जीने के साथ
दिन भर हम भागते हैं
ख़ुद से बचने के लिए
दिन भर हम उलाँघते हैं
अपने समय की अंतहीन दूरियाँ
दिन भर हम पाटते हैं
अधबने रिश्तों का अलगाव
दिन भर हम होते हैं
रेशा-रेशा, फाहा-फाहा
दिन भर हम जो पाते हैं
वह हमारे भीतर
जोड़ता है कुछ
और तोड़ता भी
जिसके लिए अगले दिन
पुनः समर है ।