Last modified on 26 अप्रैल 2012, at 12:24

समाचार वाचिकाएं / कमलेश्वर साहू


खबरों के बाजार में लगभग
उत्पाद के समान मौजूद होती हैं वे
उनके हिस्से का दुख व अंधेरा
दिखाई नहीं देता हमें
वे देश दुनिया की खबरों को बांचते हुए
आश्चर्य के समान मौजूद होती हैं
हमारे सामने-
टी. वी. के पर्दे पर
वे आंकड़ों, अटकलों,
उत्सुकताओं, जिज्ञासाओं,
संभावनाओं, नतीजों का
बाजार फैलाकर रख देती हैं
हमारे सामने
हमारी इच्छा या अनिच्छा जाने बगैर
देश दुनिया की
छोटी बड़ी घटनाओं पर
गड़ी हुई उनकी निगाहें
देख भी पाती होंगी या नहीं
अपने आसपास की
अपने घर परिवार की
छोटी मोटी साधारण सी समस्याओं को
क्या पता
उनके लिये अमानवीयता
अवसरवादिता, क्रूरता, हृदयहीनता
जोड़-तोड़, साठ-गांठ, उठापटक
वक्त का तकाजा है
बाजार की मांग है
अपने को बनाये रखने की कला है
यानि जीवन के
नये बीज शब्द हैं
हत्या, लूट, बलात्कार
दंगों की दिल दहला देने वाली
जिन घटनाओं को देखकर
पसीने से तरबतर हो
मारे भय के कांप-कांप जाती हैं
हमारे घरों की स्त्रियां
उन खबरों को बांचते हुए
देखते-दिखाते हुए
जरा भी नहीं बदलता
उनके चेहरे का भाव
चिपकी होती है
एक यांत्रिक मुस्कुराहट उनके चेहरे पर
उनके द्वारा पढ़ी जाने वाली खबरों में
शामिल नहीं होता
उनका परिवार, उनके बच्चे
उनका सुख-दुख, संघर्ष,
उनके अभाव, उनके आंसू,
उनकी समृद्धि
उनके बिस्तरों की अवैध सिलवटें
उनके तलाक के किस्से
और तीसरे पति का नाम
हर बार
कामर्शियल ब्रेक के बाद
जब वे लौटती हैं दोबारा
उनके होंठांे पर
लिपस्टिक का रंग
कुछ और गहरा व ताजा हो जाता है
वे तीसरी दुनिया के देश से आयी हैं
मगर लगती बिल्कुल भी नहीं
किसी भी अप्रिय घटना-दुर्घटना
किसी अनहोनी
किसी की मृत्यु या आत्महत्या
या किसी सामूहिक नरसंहार पर
दो मिनट का
मौन रखने की आजादी नहीं उन्हें
वे जानती भी हैं
उनके दो मिनट के मौन से
उनके आकाओं को
पड़ सकता है लाखों का फर्क
मौन की अवधि में
दिखाया जा सकता है
चार ‘प्रचार’
जो दिखाई नहीं देता
वह यह
कि ठीक पर्दे के पीछे
वातानुकूलित केबिन के
रिवाल्विंग चेयर पर बैठा हुआ व्यक्ति
तय करता है
उनके पहनने के कपड़े
ज्वेलरी लिपस्टिक
वही तय करता है
कैमरे में दिखेंगी किस कोण से
खबरें बांचते हुए
पलकें कितना झपकायेंगी
मुस्करायेंगी कब कब और कितना
कितने फैलेंगे होंठ
हंसते हुए दिखेंगे कितने दांत
टी. वी. के पर्दे पर
खूबसूरत, आजाद और बिंदास
तीसरी दुनिया के देशांे से आयी
ये समाचार वाचिकाएं
भले ही लगती नहीं
मगर जकड़ी होती हैं
अदृश्य बेड़ियों से !