एक स्त्री को जीना चाहते हो
तो पहले सीख लो उसके
इस पल को जीना, आज को जीना !
फिर उसके खण्डहरों को जीना
उसकी नींव में दबे कुचले मन को जीना
उसकी भोगी यातनाओं को जीना !
फिर उसकी आकांक्षाओं को जीना
उसकी कल्पनाओ को जीना
भविष्य से जुड़े उसके सपनों को जीना !
उसके बाद उसके साथ जीना
नेत्र के भोग को, स्पर्श की अनुभूति को
और फिर जीना साथ-साथ आत्ममुक्ति को !
यदि एक सम्पूर्ण स्त्री को जीना चाहते हो तो..