अरी सरायन ! 
मेरी प्यारी नन्ही-सी नदी
वर्षों बाद तुझे देखा आज फिर 
और दिल भर आया
तेरे किनारे बैठकर
तुझे नदी समझकर 
कुछ पानी-सा ढूँढ़ रहा था मैं
और तू ज़ोरों से रो पड़ी
तेरे काले आँसू छलछलाकर 
धीरे से ढुलक पड़े ।
किसानों ने जोत डाला 
तुझे खेत बनाकर
शहर वालों ने उड़ेल दिया है 
सारी गंदगी और ज़हर तुझमें
अब तुझे मरने से कौन रोक सकता है 
मेरी नन्ही-सी प्यारी-सी नदी !