सलाम ऐ दिल-फ़िगार लोगो
सलाम ऐ अश्क-बार लोगो
तुम्ही ने अपना वतन बचाया
तुम्ही ने बातिल का सर झुकाया
बुझा के शम-ए-हयात अपनी
वफ़ा की राहों को जगमगाया
मगर ये दिल रो के कह रहा है
लहू तुम्हारा न रंग लाया
वही है शब का हिसार लोगो
सलाम ऐ अश्क-बार लोगो
गुलों की वादी लहू लहू है
फ़ुग़ाँ की आवाज़ चार-सू है
हैं इस क़दर तिश्ना-काम मय-कश
हर एक लब पर सुबू सुबू है
निशान-ए-मंज़िल है खोया खोया
लुटा लुटा शहर-ए-आरज़ू है
बुझे बुझे हैं दयार लोगो
सलाम ऐ अश्क-बार लोगो
तुम्हारे दम से हरी ज़मीनें
ख़ुशी से दामन-भरी मशीनें
हैं उस के बा-वस्फ़ भीगी भीगी
तुम्हारी अश्कों से आस्तीनें
मैं सोचता हूँ रहेंगी कब तक
सितम के आगे झुकी जबीनें
उठाओ सर सोगवार लोगो
सलाम ऐ अश्क-बार लोगो