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सहपंथा / महेन्द्र भटनागर

पार कर आये
बीहड़
ज़िन्दगी की राह
लम्बी राह,

साथ-साथ।

पगडंडियाँ
या राज-मार्ग प्रशस्त,
खाइयाँ
या पर्वतों की घूमती ऊँचाइयाँ,
पार कर आये

साथ-साथ!

ज़िन्दगी की राह !

एक पल भी
की न आह-कराह !
दीनता से दूर,
हीनता से दूर,
कितने ही रहे मजबूर!
नहीं कोई
शिकन आयी माथ !
पार कर आये
भयानक राह,
ज़िन्दगी की राह

साथ-साथ!

आँधियों की धूल से
या
चरण चुभते शूल से —
रुके नहीं !
तपती धूप से,
गहरे उतरते
घन अँधेरे कूप से
थके नहीं !

तर-बतर
करते रहे
तय सफ़र,
थामे हाथ
बाँधे हाथ

साथ-साथ।

पार कर आये
अजन-बी
ज़िन्दगी की राह
लम्बी राह !