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सही ज़मीन / मदन डागा


आपकी इस्लाह के लिए शुक्रिया

मुझे आपकी बात की

इसलिए परवाह नहीं

क्योंकि मेरे पाँव

सही ज़मीन पर टिके हैं

ये ज़मीन मुझे गर उछाल नहीं सकती

तो गिरा भी नहीं सकती

कितनी मुश्किल से मिलती है

किसी को सही ज़मीन!

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तुम्हें तुम्हारा आकाश मुबारक !

मेरा उससे क्या वास्ता

अलग ही है

मेरी मंज़िल मेरा रास्ता