उसका उदात्त
उत्कट अभिलाषा के
गुरुत्वार्कषण से सिक्त
हमारे उदात्त से
जा मिला
और उस
समयातीत क्षण में
पोर - पोर आत्मा
रेशा - रेशा अस्तित्व
चरमानन्द के स्पर्श से
आप्लावित
बिल्कुल एक साथ
प्रलय एवं सृजन का साक्ष्य बना
विराट - दर्शन बोध
क्या ऐसा ही होता है ?