हाथों में फूल ले कपास के
स्वर झूले सावनी उजास के
पागल-सी चल पड़ी हवाएँ
मन्द कभी तेज़
झूल रही दूर तक दिशाएँ
यादों की चाँदनी सहेज
झीनी बौछार में नहाए
फिर नंगे खेत
सरिता के आस-पास के
स्वर झूमे सावनी उजास के ।
हाथों में फूल ले कपास के
स्वर झूले सावनी उजास के
पागल-सी चल पड़ी हवाएँ
मन्द कभी तेज़
झूल रही दूर तक दिशाएँ
यादों की चाँदनी सहेज
झीनी बौछार में नहाए
फिर नंगे खेत
सरिता के आस-पास के
स्वर झूमे सावनी उजास के ।