Last modified on 14 जुलाई 2014, at 23:31

सावन उतरे / विजेन्द्र

सावन उतरे, भादों आए
सूखे जनपद क्या क्या लाए
खाँसी लाए
माछर लाए
जूड़ी ताप तिजारी लाए
खिले फूल चम्पा के
कुल्ले फूटे संका के
झिर- मिर -झिर- मिर पड़ी फुहारें
साँड खड़ा दलकारे ।

आव न देखे
ताव न देखे
कैसी कुगत हुई मिनख की
अपना आपा ख़ुद ही खोबै ।

पंजा अपना लड़ा रहा हूँ
नहीं जगह देते अभिजन तो
गाड़ा अपना अड़ा रहा हूँ
मुझ को भूख ताप लाए हो
धन्ना को सुख ससाधन लाए हो ।
देख रहा हूँ
तुम आए हो
भरे पेट को
तुम भाये हो ।

जिसने कोदी नींव कमर तक
उसको हर कम्प अलग लाए हो ।
जो भी मिलता फटकन- छटकन
खा लेता हूँ अटकन-बटकन
अपनी आँते सड़ा रहा हूँ
लरने को नित तड़ा रहा हूँ ।