रंज की हद्द से गुज़र कर
मेरी भीगी आँखें,
एक मानूस सा चेहरा
तलाशने निकलीं!
मगर इस अजनबी चेहरों के समंदर में उन्हें,
सिवाए अपने,
न अपना
कोई मिला अब तक!
कुछ अदद अश्क हैं
बस,
सिसकियाँ हैं,
आहें हैं॥
और इसी काफ़िले के साथ
निकल आई हूँ..
जाने किस मौज पे साहिल
नज़र आ जाए मुझे,
जाने किस मोड़ पे हो जाए
मुक्क़मल हस्ती!
22.10.93