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सितारा / निर्मला गर्ग

   
कितने वर्षों से तुम अपने देश नहीं गई सितारा ?
बहुमंज़िली इमारत की इस नौवीं मंज़िल पर
बर्तन धोते
तुम्हारे कानों में कौन-सी ध्वनि गूँज रही है
तुम्हारे जन्म-स्थान खुलना के बीचोंबीच बहती
पद्मा
तुम्हारे चेहरे पर आकर ठहर गई है
नदी के किनारे उगे नारियल केले के वृक्ष
तुम्हारी आँखों में
अपनी पूरी आकार में हिल रहे हैं

तुम्हारी ऑंखें कितनी कोमल हो आई हैं सितारा

तुम्हारा आदमी तुम्हें यहाँ छोड़कर देश चला गया
दूसरी शादी रचाने
सोने-जागने में कोई पल तो होगा
जब तुम इस दंश से मुक्त हो पाती होगी
इमारत का माली तुम्हारी छोटी बेटी ज्योत्सना के हाथों में पानी की
नाली थमा देता है
और वह खिलखिल करती इधर-उधर छीटें उड़ाती है
छीटें तुम्हारी मन पर भी तो पड़ते होंगे सितारा

साईकिल पर बिठाकर अस्पताल भी तो ले गया था
उस दिन
जब तुम पीठ पर निकले फोड़े से कराह रही थीं
अच्छे मनुष्यों से पृथ्वी कभी खाली नहीं रही है सितारा

तुम्हारा भाई तुम्हें मुलुक बुलाता है
तुम्हारी भी दूसरी शादी रचाएगा
पर चाहता है कि अपनी बेटियों को तुम यहीं छोड़ जाओ
मैं जानती हूँ तुम ऐसा कभी नहीं करोगी
यहीं भौआपुर गाँव की एक कोठरी में
अपनी बेटियों के साथ बसर करोगी
तीन घर गोवर्धन टावर में हैं एक मलयगिरी में
एक सुमेरु में
सुबह-शाम इनमें आते-जाते
एक दिन तुम्हारे बालों में सफ़ेदी आ जाएगी सितारा

तुम्हारी बेटियाँ अपने अलग घोंसले बनाएँगी
कभी कभी अपने बच्चों को लेकर
तुमसे मिलने आया करेंगी
तुम उनमें से किसी का नाम
उस नाम पर रखना चाहोगी जिससे तुम्हारे बाबा
तुम्हें पुकारते थे
पर फिर इरादा बदल दोगी

तुमने अतीत को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया सितारा
बढती गई कर्मपथ पर अकुंठ
हममें से बहुत कम ऐसा कर पाते हैं

                  
रचनाकाल : 1999