बन बौद्ध भिक्षु, अतिशय प्रबुद्ध
उपगुप्त हुए (अ) लक्षणक बुद्ध
आलिंगन हित कर फैलाये
सपने में बुद्ध स्वयम् आये
जग के समस्त बंधन टूटे
शाणकवासी पीछे छूटे
दीक्षित कर लक्ष-लक्ष जन को
आत्मा में कर विलीन मन को
थे सिद्ध हो गये, पूर्ण काम
मथुरा ही थी साधना-धाम
प्रत्येक श्वास रत आत्म-यज्ञ
पा गये आत्म-द्युति, त्रिकालज्ञ
दम्पति देख गद्गद् होते
उल्लास-भार रहते ढ़ोते
पाकर ऋषि-सुत हो गये धन्य
उन-सा धरती पर कौन अन्य
पाया ऐसा सुत तपी, सिद्ध
जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध
धर माथे पर चरणों की रज
तर गये कोटि कुल-वंश सहज
मध्याहन्-सूर्य देदीप्यमान
शतकोटि अनंगों के समान
निःसृत प्रतिपल करुणा-निर्झर
बाँटते चतुर्दिक ज्ञान प्रखर
जीवन सविता-सा उज्ज्वल है
मन गंगा का पावन जल है
जीवन कठोर है, तप-संयत
मथुरा ही नहीं, विश्व है नत