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सीने पर किताबें / हर्षिता पंचारिया

1.
किताबों को सीने पर रखते हुए
मैं महसूस करती हूँ कि,
अगर पीड़ाओं का बोझ
शब्द नहीं उठाते तो
तो दुनिया में नमक का भार कितना होता?

2.
देखना!
जाते जाते
मृत्यु के देवता से
मेरा बस इतना ही हठ होगा,
कि टाँकने दो कुछ किताबें
मेरे सीने पर,

कहीं पीड़ाओं के देश में कंधो की अनुपस्थिति
अवसाद की स्थिति का कारक ना बन जाएँ।

3.
ईश्वर से माँगती हूँ अपने पुनर्जन्म में
एक किताब बनना,
ताकि
तुम्हारे सीने पर सोने के लिए
मुझे बहाने ना खोजने पड़े।