Last modified on 22 मई 2023, at 15:49

सीमा / कमल जीत चौधरी

उसे नहीं पता था
वह अकालग्रस्त जिस जगह रहता था
उस पर एक लीक खींच
एक सीमा घोषित कर दी गई थी
वह बोरियों से बनाई पल्ली *
कन्धे पर रखे
दराँती हवा में लहराते
कोसों मील आगे बढ़ते
दूसरे देश की हवा को
अपने देश की हवा से
अलग नहीं भेद सका
हलक गीला करता
कोई प्याऊ नहीं छेद सका


मिट्टी जो कुछ कोस पीछे
गर्म तवा थी
अब पैरों को टखनों तक
ठण्डे अधरों से चूम रही थी
उसकी नज़र और दराँती
सामने की हरियाली देख झूम रही थी
वह घास काटता ख़ुश था
पर पण्ड* बनने से पहले
वह सुरक्षा एजेंसियों द्वारा
गिरफ़्तार एक जासूस था
मीडिया के लिए एक भूत था

विपक्ष के लिए आतंकी था
दुश्मन देश का फ़ौजी था
जेलर के लिए अपराधी था
नम्बर एक क़ैदी था
यह लोकतन्त्र का दौर था
सच कुछ और था
...
भूख से तड़पते उसके गाँव में
मवेशी ही अन्तिम आस थी
देश की अपनी सीमा थी
पर उसकी सीमा घास थी
बस्स, घास थी !!
  ००

शब्दार्थ
 —
पल्ली — घास ढोने की चादर,
पण्ड — घास से भरी हुई पल्ली, इसे लद भी कहते हैं ।