एक हद को
एक दूसरी हद से
या
एक होने को
किसी दूसरे होने को
या
एक कुछ नहीं होने को
दूसरे कुछ नहीं होने से
पता नहीं किसको किससे
करती है अलग
ये सीमा रेखा
वर्जनाओं को अनुमति से
या आदेशों को सहमति से
और फिर
वहाँ क्या होता है
जहाँ होती है सीमा रेखा
और यदि कुछ नहीं होता वहाँ
तो फिर क्यों होती है वहाँ
सीमा रेखा
आतुर जिसके अतिक्रमण हेतु
सबका मन हमेशा