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सुखाड़ / नवीन ठाकुर 'संधि'


गरजै बादल,
नैं बरसै बादल।
घटा घनघोर,नाचै छै मोर
हरसै सागर
नैं सरसै गागर
खुशियाली चारो ओर।

भलेॅ आशाढ़-सौन बीतलै
अब होलै अन्हार
होलै भादोॅ के करिया अन्हार।
भादोॅ में बूंदा-बाँदी
आसिन में आशा बाँधी,
‘‘संधि’’ तरसै करि-करि शोर।

नैं एैलेॅ निरमोही पिया
रहि-रहि फाटै सजनी हिया
अन्हरिया-इँजोरिया सब एक्केॅ रं
केकरा बतैबोॅ मनोॅ के बतिया

मिट्ठोॅ-मिट्ठोॅ बाजै ढोल आरो मादल।
गरजै बादल, बरसै बादल।।