सुकाल से
अकाल तक का
जीवंत वृतांत है
गांव से आया सुखिया ।
पड़ा है
शहर में फुटपाथ पर
अपने परिवार के संग
ज्यों पड़ा हो
एक कविता संग्रह अनछुआ
किसी पुस्तकालय में ।
सुकाल से
अकाल तक का
जीवंत वृतांत है
गांव से आया सुखिया ।
पड़ा है
शहर में फुटपाथ पर
अपने परिवार के संग
ज्यों पड़ा हो
एक कविता संग्रह अनछुआ
किसी पुस्तकालय में ।