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सुनो-2 / अशोक वाजपेयी

सुनो अगर उदय की प्रतीक्षा विफल थी
तो क्या
तुम फिर हाथ दे सकती हो
बाँह दे सकती हो
सुनो अब भी सूखी टहनियों पर
चमकता है वह हलका आलोक-जल
अब भी ठहरा हुआ है
उत्सव-स्पर्श वह
सुनो अगर शस्य की
प्रतीक्षा विफल थी
तो क्या-


रचनाकाल : 1959