दीवारें उस दुर्ग की थीं
रंगीन और चिकनी
संगमरमरी ऐसी कि
निगाह डालो तो फिसले ।
मेरी प्रिया थी सुरक्षित
उसी दुर्ग के भीतर,
लहँगे में सिमटी,
घूँघट के भीतर से
टोह लेती, चौकन्नी...
खिलखिलाकर मैं हँस पड़ा-
ओहो, मेरी प्रिया घोंघी है,
गूँगी होने के अलावा !