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सुरता / हृदय सिंह चौहान

तरसा तरसा के, सुरता सुरता के
तोर सुरता हर बैरी, सिरतो सिरा डारीस ।।

जतके भुलाथंव तोला, ओतके अउ आथे सुरता
जिनगी मोर दूभर करे, कर डारे सुरतेज के पुरता
तलफ़ा तलफ़ा के कलपा कलपा के
तोर सुस्ता हर बैरी, निचट घुरा डारिस ।1।

कचलोइहा कर डारे तंयहा, पीरीत सिपचा के
अइसे जलाये रे मोला, न कोइला न राख़ के
कुहरा कुहरा के गुंगवा गुंगवा के
तोर सुरता हर बैरी, खो खो के जरा डारिस ।2।

अंगरी के धरत धरत, नारि मं पहुंच गये
का मोहिनी खवा के रे मोला, लूटे अउ कलेचुप घुंच गये
लहटा लहटा के लहुटा पहुटा के
तोर सुरता हर बैरी, निचट बया डारीस ।3।

तै निरमोही होये बैरी, सुरता तोर होइस हितवा
खुरच खुरच के तलफे खातीर, मया के बांधे गेरुवा
घिसला घिसला के, अलथा कलथा के
तोर सुरता हर बैरी, सरी अंग कोरपा डारीस ।4।

दाई ददा छोड़ेंव मंयहा, तोर लहर मं जोड़ा
सुरता कर ले रे बैरी, झन मोला छोड़ अकेल्ला
लहरा लहरा के, दहरा मं ला के
तोर सुरता हर बैरी, भंवर मं भंवा डारीस ।5।