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सूनवाड़ / हरीश बी० शर्मा


फासले कभी ज्यादा नहीं रहे
कुछ दूरी
दूरी भी इतनी
कि हाथ बढ़ाए तो जकड़ सकें।
भरोसा था
पकड़ उधर भी कमजोर नहीं होती
विश्वास के इस गहरे तल तक जाकर भी
खाली हाथ लौटा हूं मैं
सरहदें फांदने में साहस के बावजूद
जकड़ा हूं मैं
और अब उस पार
खाली हुई जगह पर
उड़ते दिखते हैं कुछ कागज
या पगडंडियां
दूर तक सूनवाड़।