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सूरज-१ / ओम पुरोहित ‘कागद’

रेत में
सांझ ढ़ले छिपता है सूरज
मानो
सिर छुपा कर
शुतुरमुर्ग
आत्महत्या कर रहा हो !

नहीं सूर्य, नहीं !
ऐसे मत करो
शर्मसार हो कर
अकाल के तो
और भी कारण हैं !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"