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सृजन / राज हीरामन

जीवन में मेरे भर दो रंग
ऐ रंगकार !
कि राजनीतिक छितराव से
जीवन अब फीका पड़ गया !
गा दो प्राणों के गीत
ऐ गीतकार !
कि राजनीतिक बिखराव से
जीवन अब निष्प्राण हो गया !
भर दो मधुर-मधुर संगीत
ऐ संगीतकार !
कि राजनीतिक उथल-पुथल से
जीवन अब बेलय हो गया ।
बिछा दो वसंत के फूल
ऐ माली !
कि राजनीतिक उतार-चढ़ाव से
जीवन अब नीरस हो गया !
शब्दों में अर्थ भर दो
ऐ कवि !
कि राजनीतिक उतार-चढ़ाव से
जीवन अब नीरस हो गया !
शब्दों में अर्थ भर दो
ऐ कवि !
कि राजनीतिक चापलूसी से
शब्द अपना अर्थ खोने लगे हैं ।
जीवन-दर्शन का पैगाम भर दे
ऐ दार्शनिक !
कि राजनीतिक उठा पटक से
जीवन का अब मूल्य ही खो गया !