जन्म आगरा में ५ मार्च १९३४ को हुआ
चौथी कक्षा तक पढ़ाई लिखाई घर पर ही हुई। घर पर ही एक अध्यापक पढ़ाने आते थे क्योकि ये एक दुर्लभ
इकलौती संतान थे इनसे पहले 5 बच्चे ज़िंदा नही रहे, इसलिए इन्हें कही बाहर नही जाने दिया गया। पांचवी कक्षा में इनका प्रवेश राजकीय विद्यालय आगरा में हुआ। वहां से इन्होंने हाई स्कूल किया। हाई स्कूल के बाद ये आगरा कॉलेज, आगरा से जीव विज्ञान बिषय के साथ इंटर किया और फिर एक साल बी. एस. सी. में पढ़े, लेकिन तब इनकी रूचि साहित्य और हिंदी कविता की तरफ हो गयी। फिर इन्होंने अंगरेजी साहित्य और हिंदी साहित्य के साथ बी.ए. किया और फिर हिंदी से एम ए किया और उसी कॉलेज में १९५९ से पढ़ाने लगे। १९५९ से १९६३ तक इन्होंने आगरा कॉलेज में पढ़ाया और फिर १९६३ से १९६९ तक सेन्ट जोन्स कॉलेज आगरा में पढ़ाया उसके बाद में इस्तीफा देकर मैनपुरी चले गए। मैनपुरी में नॅशनल कॉलेज भोगांव में ये बिभागाद्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे। वहाँ इन्होंने १९८४ तक नौकरी की फिर ये अमेरिका चले गए। लेकिन अमेरिका जाने से पहले ये कनाडा गए फिर केंद्र सरकार की तरफ से हिंदी के प्रसार के लिए मारीसस गए फिर अमेरिका चले गए। वहाँ ये २००४ तक रहे फिर वापिस आए तो मुलायम सिंह जी ने उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया और राज्य मंत्री का दर्जा दिया। वहा ये साढ़े तीन साल रहे, फिर ये आगरा लौट आए।
काव्य लेखन (श्री सोम ठाकुर जी के शब्दों में)
शुरूआत मैं तो हम जानते ही नहीं थे कि कविता क्या होती है, मेरे एक दोस्त और सहपाठी हैं शेर बहादुर ठाकुर थे जो आज बहुत बड़े भाषा विज्ञानी माने जाते हैं। मेरा घर और उनकी कोठी पास पास थे और मेरे यहाँ बिजली नही थी उनके यहाँ थी। कविता से मेरा वास्ता नही था। गला अच्छा था सो फिल्मों के गाने चाव से गाता था। एक दिन उन्होंने कहा - सोम कविता सुनाने चलेंगे, सो हम उनके साथ चले गए। वहा पहुचकर मैंने कहा कि खड़े होकर सुनेंगे। पसंद आये तो और रुकेंगे नही वापिस चले जायेंगे। उन दिनों हमारे पिताजी के सख्त आदेश थे कि दिए जलने से पहले घर जरूर आ जाना। कुछ कविता सुनी और हमें अच्छी लगी तो और सुनी। लोगों ने भी उनकी कविताओं को करतल ध्वनि दी और खूब शाबासी दी। हमें भी लगा कि ऐसी कविता हम भी कर सकते हैं। मैंने उन दोस्त से कही ये बात, तो वे बोले कि ये तो ईश्वर प्रदत्त गुण है। भावनाओं से मैं परिचित था और कंठ मेरा अच्छा था तो मैं पास के एक वाचनालय गया और वहा पता चला कि उन कवियों मैं से सर बलबीर सिंह रंग जी का कविता संग्रह प्रकाशित हुआ था। मैं जिस कवि का नाम लूं उसका कोई कविता संग्रह वहा नही था वो भी झुंझला गया थोड़। फिर उसने १०-१५ कविता संग्रह मेरे सामने रखे। उनमे दीक्षाना थी, जिसमे महादेवी जी की कविताएं और उनके बनाये चित्र थे।