(१)
निस्सीम शक्ति निज को दर्पण में देख रही,
तुम स्वयं शक्ति हो या दर्पण की छाया हो?
(२)
तुम्हारी मुस्कुराहट तीर है केवल?
धनुष का काम तो मादक तुम्हारा रूप करता है।
(३)
सौन्दर्य रूप ही नहीं, अदृश्य लहर भी है।
उसका सर्वोत्तम अंश न चित्रित हो सकता।
(४)
विश्व में सौन्दर्य की महिमा अगम है
हर तरफ हैं खिल रही फुलवारियाँ।
किन्तु मेरे जानते सब से अपर हैं
रूप की प्रतियोगिता में नारियाँ।
(५)
तुम्हारी माधुरी, शुचिता, प्रभा, लावण्य की समता
अगर करते कभी तो एक केवल पुष्प करते हैं।
तुम्हें जब देखता हूँ, प्राण, जानें, क्यो विकल होते,
न जानें, कल्पना से क्यों जुही के फूल झरते हैं।
(६)
रूप है वह पहला उपहार
प्रकृति जो रमणी को देती,
और है यही वस्तु वह जिसे
छीन सबसे पहले लेती।