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सौ शेर / एहतराम इस्लाम

मुस्कुराहट तेरे होठों की मुझे,
अपनी मंजि़ल का पता लगती है।1
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पेड़ गिनती के सही नफ़रत के,
सारी बस्ती को हवा लगती है।2
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संग ही संग है, इस जगह,
आइना कुछ को क्या कीजिए।3
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दिखाई दे तो है शब्दों में जादू,
सुनाई दे तो पत्थर बोलते हैं।4
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यक़ीं आए न आए तुमको लेकिन,
बहुत से लोग मर कर बोलते हैं।5
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मन में काली-काली रात,
तन पर उजला-उजला दिन।6
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नभ में तारे चमकने लगते हैं,
जब भी आंचल पसारती है रात।7
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मत पूछो क्या था बचपन,
दिन होली दीवाली रात।8
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अंधेरा न रस्ते में आया कहीं,
कहां छोड़ता मेरा साया मुझे।9
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मुक़द्दर मे थी मेरे मंजि़ल नई,
नया रास्ता रास आया मुझे।10
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दर्द हर जाएगा दवा होकर,
कोई देखे तो दर्द का होकर।11
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डंचे आसन पे जब से बैठ गया,
रह गया तू भी देवता होकर।12
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कोई रिश्ता सच से यक़ीनन है मेरा,
मेरी बात लोगों को लगती है गाली।13
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बड़ा आदमी कौन मानेगा तुझको,
तेरी जि़न्दगी है दिखावे खाली।14
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फ़रिश्ता,देवता, शैतान देखो,
न ढूढो आदमी को आदमी में।15
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तू जो मेरे लिए थकने से बचा,
रास्ता मैं भी भटकने से बचा।16
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तुझको पहचान नहीं शोलों की,
खुद को फूलों पे लपकने से बचा।17
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गूंज है गीतों की लेकिन,
जि़न्दगी का स्वर कहां है।18
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‘एहतराम’ अब ख़्वाब में भी,
ख़्वाब का मंजर कहंा है।19
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आंख वाला ही जब नहीं कोई,
क्या मिलेगा दीया जलाने से।20
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तलाश करता है मौक़ा लहू बहाने का,
है कितना शौक़ उसे सुर्खियों में आने का।21
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दुनिया के सर्द-ओ-गर्म ने पहुंचा दिया कहां,
ख़ुद मेरा आइना मुझे पहचानता नहीं।22
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नवाजि़श है जो यह कविता पे इतनी,
कोई शब्दों में उलझा रह गया क्या।23
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बन जाते हैं जब-तब मेरा मासूम सा बचपन,
जि़द पकड़े हुए पांव पटकते हुए लम्हे।24
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मेरी पसंद,तमन्ना,इरादा जानता है,
तो क्या कोइ मुझे मुझसे ज़्यादा जानता है।25
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जि़न्दा है इन्तिक़ाम की चिंगारियां जहां,
दिल का हर इक जख़्म वहां भर गया तो क्या।26
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देश को देगी कितने चपरासी,
ये हजारों में अर्जियां जो हैं।27
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नज़र आता है मेरा अस्ल चेहरा,
मगर मेरी अदम-मौजूदगी में।28
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धर्म जुदागाना रखकर भी,
हम मज़हब होते हैं बच्चे।29
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तख्त-ए-दार चूमने वाला,
सरबुलंदी ज़रूर पाता है।30
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मैदां में,कारखाने में,दफ्तर में औरतें,
आखिर परिंदे पिंजड़े से बाहर निकल गए।31
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कोई इल्ज़ाम क्यों दूं बिच्छुओं को ‘एहतराम’ आखि़र,
मुझे ही डंक लगवाने का चस्का था बुरी लत थी।32
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मुझे भी याद आयी है कोई भूली कथा अक्सर,
मेरी पलकों पे भी अक्सर सितारे झिलमिलाए हैं।33
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इजाज़त दी गई है सांस लेने की यक़ीनन,
मगर माहौल में गाढ़ा धुआं रक्खा गया है।34



है शहरियों से दोनों तरफ़ शांति की अपील,
और’ फ़ौज सावधान है सरहद के आसपास।35
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शाख़,गुल,तितली,धनक,बिजली, घटा आई नज़र,
जिस तरफ देखा,हमें शान-ए-खुदा आई नज़र।36
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कम-जर्फ़ ही नहीं है,सियह बख़्त भी है वो,
दरियाओं से जो करता है दरियादिली की बात।37
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मान रखता कौन विष का,कौन अपनाता सलीब,
कोई ईसा था न शंकर,सच को सच कहता तो कौन।38
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आदमी तो ख़ैर से बस्ती में मिलते ही न थे,
देवता थे,सो थे पत्थर, सच को सच कहता तो कौन।39
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ब-असर लोगों की इस बस्ती में,
किससे पूछें कि असर किसका है।40
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दर-ओ-दीवार है मेरे लेकिन,
सोचता रहता हूं, घर किसका है।41
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यों ही शमशीरों का ललकारेगा,
रह गया धड़ पे सर आगे भी।42
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दूर तक नाम नहीं साये का,
है तो पीछे भी शजर आगे।43
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दायरे टूट न पाए वर्ना,
जो तो सकती थी नज़र भी।44
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मुस्कुरा लेता हूं मैं भी जब तक,
मेरे एल्बम में भी तस्वीरें हैं।45
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झुक के मिलना पड़ेगा हर इक से,
क़द हमारा बड़ा न हो जाए।46
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मैं तो बे-दाग़ लौट आया हूं,
आपको हौसला न हो जाए।47
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अगर चारा निगल जाती है धोखे से बड़ी मछली,
तो अक्सर ये भी होता है कि बंसी टूट जाती है।48
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तू तो न पूछ ऐ मेरी सादा-दिली कि मैं,
दुनिया जिधर खड़ी थी, उधर क्यों नहीं गया।49
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भटकता है जो दरिया जंगलों में,
समुन्दर से किसी दिन जा मिलेगा।50
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क़ह्र सहता हूं रोज दर्पण का,
रोज दर्पण के पास जाता हूं।51
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हाथ बच्चों पे कब उठाता हूं।
भूख से जूझना सिखाता हूं।52
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चेहरे वही हैं, सिर्फ़ मुखौटे बदल गए,
कैसे कहें,फ़रेब के पुतले बदल गए।53
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मातृ-भाषा,राष्टृ भाषा,राज भाषा, सब तो हैं,
बस ज़रा व्यवहार में हिन्दी नहीं तो क्या हुआ।54
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पट्टियां आंखों पे चढ़वा दी गई हैं ‘एहतराम’,
देश की जनता अगर अंधी नहीं तो क्या हुआ।55
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दुआ न दे कि जियूं बेशुमार बसरों तक,
कि जी के दो घड़ी तड़पा हूं यार बरसों तक।56
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मौज-मस्ती का नज़ारा इक तरफ़,
आंसुओं की मुक्त धारा इक तरफ़।57
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पग-पग भटकाव हो गए,
इस क़दर सुझाव हो गए।58
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क्या तुम्हारे रूप का वर्णन करूं,
जिसने देखा तुमको दर्पन हो गया।59
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सुधा के नाम पर विष पी रहा हूं।
यही जीना हुआ तो जी रहा हूं।60
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निशि-दिन भ्रष्टाचार में है।
वह शायद सरकार में है।61
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सारी व्यवस्था है पक्की
यस सर! वह भी कार में है।62
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कतारें दीपकों की मुस्कुराती हैं दीवाली में,
निगाहें ज्योति का संसार पाती हैं दीवाली में।63
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यूं ही हलचल ने अरमानों में होगी।
शरारत कुछ तो मुस्कानों में होगी।64
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ले उठ रहा हूं बज़्म से मैं तश्नगी के साथ।
साक़ी मगर ये जुल्म न हो अब किसी के साथ।
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भाज्य को भागफल समझते हैं।
लोग मजमे को दल समझते हैं।66
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नंगा खड़ा है धूप में, दुनिया से बेख़बर।
टूटे हैं जाने कौन से सदमे दरख़्त पर।67
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नज़रें न क्यों जमाएं बहलिया दरख़्त पर।
रुकने लगे हैं आके परिंदे दरख़्त पर।68
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कैसी डरावनी थी, वो जंगल की रात भी,
काटी गई जो राम भरोसे दरख़्त पर।69
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प्रश्न कोई कहां अभाव का है।
है तो वितरण में भेदभाव का है।70
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इक तरफ़ मेरा अहम है, इक तरफ़ तेरी खुशी,
आ गया मेरे लिए पल ‘इम्तहानी’ हो न हो।72
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सुर्ख़ मौसम की कहानी है,पुरानी हो न हो।
आसमां का रंग आगे असामानी हो न हो।73
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फिर दिलों पर राज हो इंसानियत का या खुदा।
जि़न्दगी फिर जि़न्दगी महसूस हो हर शख़्स को। 74
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दहशत ऐसी भी कभी महसूस हो हर शख़्स को।
खूं में तर चादर हरी मसहूस हो हर शख़्स को। 75
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दीवाली में घर-घर दिये मुस्कुराए।
मगर तुम न मेरे लिए मुस्कुराए। 76
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जुबां तो खोलने की है इज़ाज़त।
किसी से सच बोलने की है इज़ाज़त।77
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बच्चा था मैंने अपने आपको को चाटा लगा दिया।
अग्रज हैं आप पीठ मेरी थपथपाइए। 78
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चट्टान तोड़ने को न घूंसा उठाइए।
मुट्ठी को चोट आएगी, मुट्ठी बचाइए।79
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क्या जि़दगी हमारी-तुम्हारी है इन दिनों।
हर मूली अपने पत्तों से भारी है इन दिनों।80
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तेरे ख़्याल को कहता है, जि़दगी अपनी।
तेरा ख़्याल जिसे अस्त-व्यस्त रखता है।81
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स्दा भटकता है,रस्ता कभी नहीं पाता,
जे ‘एहतराम’ इरादों को पस्त करता है।82
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तरह-तरह के भुलावों में मस्त रखता हूं।
मुझे वो कैसी निपुणता ध्वस्त रखता हूं।83
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रीते के रीते हैं हम।
जाने क्या जीते हैं हम।84
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फंस ही गया मंझधार का मारा नहीं छूटा।
पर देखने वालों से किनारा नहीं छूटा।85
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कोना तंहाई का दमकता है।
तेरी तस्वीर मुस्कुराई क्या।86
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देता रहता है तू सफाई क्या।
तेरे दिल में है कुछ बुराई क्या।
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तन पर है सजा मख़मल,पर मन की दशा क्या है।
सोचा कभी तुमने, जीवन की दशा क्या है।88
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याद से कौन बचा?बच न सकेगा तू भी।
आग तंहाई की भड़केगी जलेगा तू भी।89
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लहू का नाम न था खंजरों के सीनों पर।
मगर लिखी थी कथा सारी आस्तीनों पर।90
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तूफां नज़र में था, न किनारा नज़र में था।
हिम्मत थी अपनी,तेरा सहारा नज़र में था।91
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ज़मीन छोड़ी, न छोड़ा है आसमां मैंने।
तुझे तलाश किया है कहां-कहां मैंने।92
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कैसे कहूं कि आपका जादू चला नहीं।
मुंह में जुबां है सबके,कोई बोलता नहीं।93
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प्यार में कर्तव्य क्या, अधिकार क्या।
हो गणित जिसमें भला,वह प्यार का।94
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यूं तो मिल न गई होगी मंजिल-ए-मक़सूद।
उबूर हमने किए होंगे मरहले कितने।95
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ये बहस छोडि़ए किस-किस के संग थे कितने।
पता लगाइए साबित हैं आइने कितने।96
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उच्च कुल वाला हूं,गिर सकता हूं मैं उंचे कुलों में,
यह कहां लाए हो,यह तो वैश्याओं की गली है।97
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आधुनिक तहज़ीब पर क्या सोचकर चर्चा चली है।
आवरण सुंदर,सुभग,भीतर से पुस्तक खोखली है।98
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याद तेरी रातभर का जागरण दे जाएगी।
स्वप्न की भाषा को लेकिन व्याकर दे जाएगी।99
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आपका पत्र क्या डाकिया दे गया।
रातभर जागने की सजा दे गया। 100