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स्थगन / आलोक कुमार मिश्रा

कुएँ की जगत पर बैठा मेंढक
कूद जाएगा उसमें ही
और बंध जाएगा ताउम्र उससे
रोक कर सब काम उसे रोको उर्मिल

स्थगित कर दो अपना चुंबन
कि देखकर हमें चिडियाँ हो रहीं है बेकल
उनके चिड़े कहीं दूर गये हैं
लौटेंगे देर शाम

अरे रुको और देखो तो उसे
बढ़ी जा रही है उस ओर
जिधर बिछा रखा है बहेलिए ने जाल
हिरणी को क्या पता कि जंगल में अब
जानवर से ज़्यादा इंसान आ गये हैं
ये बताओ उसे कैसे भी उर्मिल

देखो उर्मिल
हमें हमारे प्यार में सिर्फ़ एकांत नहीं
ये भरी-पुरी दुनिया भी चाहिए
भला बिना इनके
हम कैसे करेंगे प्यार
क्यों कर करेंगे प्यार उर्मिल!