यहीं से उठता है
वह नगाड़ा
वह शोर
वह नाद
जो हिला देता है
पत्थरों को
झरनों को
आकाश को
वही सब जो मुझमें
धरा है ।
सिर्फ़ नहीं है
तो एक स्पर्श
जहाँ से
यह सब
उठता है!