देश के जवानियों
स्वतंत्रता सेनानियों
न और कोई कामना
यही है सिर्फ़ प्रार्थना
स्वतंत्रता कि आरती सँभालकर उतारना!
राष्ट्र चेतना के सब प्रयोग अब कहाँ गए
त्याग भावना के वे सुयोग अब कहाँ गए
धर्म जाति प्रान्त पर तो लड़ रहे सभी यहाँ
स्वदेश हेतु लड़ सकें वे लोग अब कहाँ गए
बड़ी हैं मुश्किलें अभी
हैं दूर मंज़िलें अभी
पंथियों! सगुन ज़रा सँभाल कर उतारना!
ज़िन्दगी को आज कर्म का नया सितार दो
सुप्त स्वर को शौर्य-स्वाभिमान की पुकार दो
भारती का भाल झुक सके कभी न इसलिए
देश प्रेम वाले गीत आज द्वार-द्वार दो
एक हाथ में क़लम लो
एक में लो अस्त्र तुम
गीतकारों! वेश चन्द का सदैव धारना!
हम रहें स्वतंत्र सर्वदा यही उम्मीद हो
देश में हमारे रोज़ होली और ईद हो
मातृभूमि पर पड़े जो दुश्मनी नज़र कभी
तो कामना है हम जवान देश पर शहीद हो
भले ही कर्म हो अलग
भले ही धर्म हो अलग
साथियों! अनेक शत्रु एक हो के मारना!