Last modified on 27 मई 2014, at 13:18

स्वदेशी स्वप्न / पुष्पिता

परदेश प्रवास के जीवन में
शामिल है तुम्हारा जीना
मेरे सपनों में
तुम्हारे सपने
सूरीनाम की धरती पर
स्वदेश की आहटें
मेरी धड़कनों की ध्वनि में
करती हैं चुपचाप बातें

वृक्षों के पास
अपने फलों के सपने होते हैं
फूलों के पास
अपनी सुगंध के स्वप्न
बीज अपने
वृक्षों के लिए स्वप्न देखते हैं
और वृक्ष
अपने बीजों के लिए
धूप में तपते हुए तपस्या करते हैं
परिक्रमा करते हैं ऋतुचक्रों की

नदी
अपनी मछलियों के लिए
स्वप्न देखती है
और समुद्र
अपनी नदियों के लिए

मैं पारामारिबो के तट पर
अटलांटिक महासागर की हिलोरों में
तकती हूँ हिन्द महासागर के स्वप्न
प्रवास की पीड़ा में
देखती हूँ स्वदेश के स्वप्न
विदेश की भाषा में
सुनती हूँ अपनी भाषा के अर्थ
ध्वनि में होते हैं नई भाषा के अर्थ-गुंजलक।