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स्वर्ग यहीं है/रमा द्विवेदी


देवताओं के स्वर्ग में,
क्या धरती का स्वर्ग है?
न जन्म का बंधन, न मृत्यु  का भय,
न कर्त्तव्यों की कशमोकश,
ना दायित्वों का बोझ,
वहाँ पर है रोशनी का तेज प्रकाश,
अप्सराओं का सौन्दर्य-नृत्य,
सोम-रस पान,ईर्ष्या-द्वेष,पद की चाह,
नृत्यांगनाओं का नृत्य  कर-
देवताओं को रिझाना-बहलाना,
उनके इशारों पर चल,
तपस्वियों की तपस्या भंग करना,
शापवश धरती पर आना,
मातृत्व   प्राप्त करना,
शाप-अवधि पूर्ण होने के उपरान्त,
वापस लौट जाना,
चमक-दमक की दुनिया में,
जहाँ  मातृत्व -स्नेह का ,
नाममात्र नहीं,
इसे पाने के लिए,
देवी-देवताओं को भी,
धरती के स्वर्ग पर ही,
अवतरित होना पड्ता है,
फिर क्यों स्वर्ग-मोक्ष की,
चाह करते हैं लोग?
धरती का स्वर्ग जो सहज ही,
सबको प्राप्त है,
उसका अनुभव नहीं कर पाते,
जो अप्राप्त है,अदृश्य  है,
उसकी आकांक्षा करना,
मृगतृष्णा के सिवा कुछ नहीं,
जिसे हम देख नहीं सकते,
जिसे जी नहीं सकते,
उसके पीछे दौड़ना नादानी है।
जो प्राप्त है ,उसे महसूस करो,
सच्चे सुख की अनुभूति होगी,
तब तुम स्वयं ही कहोगे कि-
स्वर्ग कहीं और नहीं है,
स्वर्ग यहीं है, स्वर्ग यहीं है॥