कविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें
झनझना उठी झिल्ली,
झिन-झिन दुर्वा से होकर गई कौन ?
क्रुद्ध नागिनी-सी
अपने फन सहस पटकती
गर्जन करती, तर्जन करती,
मुख से गरल उगलती ।
कविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें
झनझना उठी झिल्ली,
झिन-झिन दुर्वा से होकर गई कौन ?
क्रुद्ध नागिनी-सी
अपने फन सहस पटकती
गर्जन करती, तर्जन करती,
मुख से गरल उगलती ।