भयभीत हैं स्वर
स्वर कातर हैं
प्यासे कंठ की तरह रुक्ष हैं स्वर
स्वर थरथरा रहे हैं बांसुरी के
सावन नहीं बरसा
भादो नहीं बरसा
सूखे पनघट पर सिसक रहे हैं स्वर
बांसुरी के स्वर कर्कश बन
प्रवेश करना चाहते हैं -
जिला कलक्टर के घर
भयभीत हैं स्वर
स्वर कातर हैं
प्यासे कंठ की तरह रुक्ष हैं स्वर
स्वर थरथरा रहे हैं बांसुरी के
सावन नहीं बरसा
भादो नहीं बरसा
सूखे पनघट पर सिसक रहे हैं स्वर
बांसुरी के स्वर कर्कश बन
प्रवेश करना चाहते हैं -
जिला कलक्टर के घर