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हमने तो.... / रमेश रंजक

धुँधले दिन हमने उजलाये
रात में डुबो कर
हमने तो
धुँधले दिन उजलाये ।

बूढ़ी संध्याओं की भीड़
चली गई
टूटी प्रतिध्वनियाँ
स्याही में सिमट गए नीड़
हवा हुईं
प्रतिबिम्बित छवियाँ

ऊब भरे साये दहकाए
मुर्दा से ढो कर
हमने तो......

गंगाजलः आँसू की बूँद
पी कर ही
रश्मियाँ उगाईं
दुखियारी पलकों को मूँद
भीतर ही
डुबकियाँ लगाईं

सारा ईमान खींच लाए
अम्ल में भिगो कर
हमने तो.....