एक सुरमई शाम
आँखों में सिमटा हुआ-चमकीला समंदर
सूरज की मद्धम होती आँच
अठखेलियाँ करती
लहरों का उफान
कुछ गुनगुनाती-सी हवा
चुपके से आहट देता चाँद
किनारों का शोर पर
सब अनसुना
किनारे बस तुम और मैं
तुम्हारा हाथ
तुम्हारा साथ
और मधुरिम होता
हमारा नेह,