Last modified on 22 मई 2019, at 18:19

हमारी बच्चियाँ / पूनम वासम

हमारी बच्चियाँ बड़ी नहीं होतीं मासिक के बाद
शहर की बच्चियों की तरह
कि दबोच लिया जाता है उन्हें
उम्र के इस पड़ाव से कहीँ पहले
तेन्दू, सरगी, साल के पेड़ों के पीछे
अपनी घुटती साँसो से चखती हैं वे
गदराये बदन के बिना ही यौवन का स्वाद ।

भूई नीम की पत्तियों की तरह
सिसकियों के बीच
टटोलते हाथों के मध्य तलाशती है
किसी प्रेमी के हाथों की गरमाहट
ताकि दर्द को बदल सकें किसी ऐसी घटना में जो पूर्वनिर्धारित हो ।

हमारी बच्चियाँ नहीं देखती सपने
सफ़ेद घोड़े पर सवार राजकुमार के आने का
कि सपना देखने वाली पुतलियाँ इनकी आँखों से
कब की हटा ली गई हैं
इनकी आँखें देखती है गारा, मिट्टी, ईंट, पत्थर, रेत से भरी मोटी-मोटी वज़नदार तगाड़ियाँ
जिनकी भार से इनका क़द उतना ही रहा
जितना इनकी पेट की लम्बाई ।

हमारी बच्चियाँ पैदा होती है इन्द्रावती की नदी में आई बारिश की बाढ़ की तरह
खिलती हैं तेज़ी से किसी जँगली फूल की तरह
चहकती हैं पहाड़ी मैना की तरह ।

हमारी बच्चियों के होने से ही
जंगल आज तक हरा भरा है
हमारी बच्चियाँ नहीं जानतीं ऐसा कुछ भी
कि समझ सकें शहर की बच्चियों की तरह
योनि से रिसते सफ़ेद स्त्राव और लाल ख़ून में अन्तर
बढ़ता हुआ पेट इन्हें किसी देवी प्रकोप की घटना की तरह लगता है ।

हमारी बच्चियाँ नहीं जानतीं शहर की बच्चियों की तरह
नीले आसमाँ के विषय में कुछ भी
नहीं जानतीं कि धूप का एक टुकड़ा
थोड़ी सी हवा और स्वाति नक्षत्र जैसी बारिश की कुछ बून्दें इन्तज़ार कर रही हैं उनका,

यहीं इसी पृथ्वी पर
कि पृथ्वी को अब तक नहीं पता
बच्चियों को दो भागों में विभाजित करने का फार्मूला ।