Last modified on 1 जनवरी 2009, at 18:28

हरकत / प्रयाग शुक्ल

होती है हरकत
चीज़ों में
कई बार ।

अचानक टन्न से
बोल उठता है
बरतन एक ।

सरक कर गिर पड़ती है
मेज़ के किनारे से
कोई चीज़ ।

तहा कर रखे हुए कपड़े
न जाने कब
झुक आते हैं
आगे की ओर ।

न जाने कब तिरछी हो
जाती है तस्वीर ।
पलस्तर आ रहता है,
अटका हुआ,
नीचे ।

न जाने कब
चलते-चलते
मुड़ जाती है दिशा ।