Last modified on 1 फ़रवरी 2020, at 16:21

हरियाला सावन / निशा माथुर

हरियाला सावन, पायल खनखनावत
मोरा बिछुआ भी खनके, करे पुकार!

कानन में सांवरिया, चुप-चुप निरखत
झूमत सावन, सरस बरसे बरखा बहार!

कारी कारी बदरीया, उमङ बरसावत
धरा रूप धर लीनी है, सौलह सिंगार!

झूला झूंलू पींग, मस्त गगन को छुवत
मन फूल खिले कजरी के, राग मल्हार!

चुनरीया धानी मोरी, बहकी बल खावत
अंगङाई लेत, सिलि-सिलि चलत बयार!

मन पंख फैला, केहू-केहू मयूरा नाचत
पीहू पीहू बैरी-सा पपीहा करे पुकार!

उमङ घुमङ घङ-घङ बादल गरजत
नहनी नहनी तन बूंदियाँ बरसाये प्यार!

भीगा अँचरा, कजरा नैनन में मुस्कावत
छुईमुई तन सांसों के बज गये तार!

मेघ बिजुरी आलिंगन कर रास रचावत
रूत छेङे मोहे, रिमझिम बरसाये फुहार!

मैं बैरन भीगा मन, सावन आग लगावत
बिन बोले नयनों से बहती अंसुवन धार!