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हवा-1 / सुनीता जैन

अपने आप कभी नहीं मरता फूल
मरता है उस हवा के मारे
जो सुबह
करती गुहार
चूम लेती पंखुरी की
अन्तिम परत कोमल

फिर बदल जाती पाकर सुगन्ध
धीरे-धीरे

रोकता तब फूल दोनों बाँह पसारे
लौटती नहीं वह
लौटते हैं लू के थपेड़े
छोड़ देता फूल तब
आत्म रक्षा के यत्न सारे

अपने आप कभी नहीं मरता फूल
मरता है केवल हवा के मारे।