क्यों नहीं
हमने अभी सूँघी
हवा की गंध
एक क्षण ही
थरथराया जिस्म था
दिन का
चोंच में ले उड़ी चिड़िया
जब नया तिनका
अचीन्हे ही रह गए
अहसास के संबंध
सतह काँपी झील की
या कंपी परछाई
तैरती बतखें नहीं
यह सब समझ पाई
किया बरगद ने
सुबह के साथ था
अनुबंध
ले न पाई धूप-
बारिश अनुभवों से होड़
हम ढलानों पर नहीं
पद चिह्न पाए छोड़
होंठ पर जिनके
लिखी है
प्यार की सौगंध