तूने कपटपूर्वक छीन ली
मेरी धरा
और मेरे कंधों पर
जुआँ रख दिया
मुझे ही जोतनी पड़ी
बैलों की तरह
अपनी ही जमीन
फसल कट जाने तक
तू बेरहमी से
बरसाता रहा
मेरी पीठ पर कोड़े
डकार गया तू
मेहनत का फल
मेरे हिस्से आई
मात्र भूख
मेरे बच्चे!
भूखे-प्यासे बिलखते रहे
मेरी दुर्दशा पर
हँसते-मुस्कराते रहे
तू और तेरे बच्चे
अब मेरा
कोई नहीं
यह धरती भी नहीं
न ही धूप और आकाश
प्रकाश और अंधकार भी नहीं
यह हवा, नदी, समुद्र भी
मेरे नहीं रहे
और तो और
हरामी भगवान भी
मुस्कराता खड़ा है
तेरे ही पाले में
मेरे खिलाफ
हुक्म देता हुआ
”यह राक्षस है
धर्म रक्षा के लिए
इसे मार डालो/खत्म कर दो
मिटा दो
जैसे मिटाया
शंबूक को
एकलव्य को
हमेशा-हमेशा के लिए।“
आखिर
कब तक
होता रहेगा
यही सब!