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हाइकु 115 / लक्ष्मीनारायण रंगा

डावा जीवणां
पग सागै चालै तो
मंजल मिलै


पाणी में मचै
उथळ-पुथळ तो
लै‘रा जनमें


बै‘न दिसावां
मिला हाथ सूं हाथ
रै‘वै प्रेम सूं