Last modified on 27 जुलाई 2018, at 13:17

हाइकु 117 / लक्ष्मीनारायण रंगा

कविता नईं
चुटकला घड़ थूं
मंचां जम‘सी


हवा रो हाथ
छुवै बादळी डील
चमकै बीज


रमतियां रा
रंग-रूप तो जुदा
माटी तो अेक