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हाइकु 124 / लक्ष्मीनारायण रंगा

पंतग चावै
पंछी दाई उडणो,
डोर ई रोकै


मिनख मन
हंसै सगळा सांमै
रोवै अेकलो


हर मन है
कविता‘र कहाणी
छू अर देख